सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के निकाय चुनाव – ओबीसी आरक्षण का विरोध करने वाली याचिका की सुनवाई की
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को देश में आरक्षण की तुलना ट्रेन से करते हुए कहा कि जो लोग डिव्वे में चढ़ जाते हैं ‘वे नहीं चाहते कि दूसरे अंदर आएं’। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओवीसी) आरक्षण का विरोध करने वाली याचिका की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।
याचिकाकर्ता मंगेश शंकर सासाने की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार के जयंत कुमार वंठिया के नेतृत्व वाले आयोग ने स्थानीय निकाय चुनावों में ओवीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया और वह भी विना पता लगाए कि वे राजनीतिक रूप से पिछड़े हैं या नहीं। न्यायमूर्ति कांत ने शंकरनारायणन से कहा, वात यह है कि इस देश में आरक्षण का धंधा ट्रेन की तरह हो गया है। जो रेलगाड़ी के डिव्वे में चढ गए हैं, वे नहीं चाहते कि कोई और अंदर आए। यही पूरा खेल है। याचिकाकर्ता का भी यही खेल है। शंकरनारायणन ने कहा कि कम्पार्टमेंट ‘पीछे भी जोड़े जा रहे हैं ।
उन्होंने यह भी कहा कि राजनीतिक पिछड़ापन सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन से अलग है, और ओवीसी को स्वयमेव राजनीतिक रूप से पिछड़ा नहीं माना जा सकता है। उन्होंने कहा, ओवीसी के भीतर, आरक्षण के उद्देश्य से राजनीतिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों को पहचाना जाना चाहिए। न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि जव कोई समावेशिता के सिद्धांत का पालन करता है, तो राज्यों को अधिक वर्गों की पहचान करने के लिए वाध्य होना पड़ता है।
उन्होंने कहा, सामाजिक रूप से, राजनीतिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग होगा। उन्हें लाभ से वंचित क्यों किया जाना चाहिए? इसे एक विशेष परिवार या समूह तक ही सीमित क्यों रखा जाना चाहिए? शीर्ष अदालत ने याचिका पर नोटिस जारी किया और इसी विषय से संबंधित अन्य लंबित मामलों के साथ संबद्ध करते हुए राज्य सरकार से जवाव मांगा।
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