498ए के बढ़ते दुरुपयोग पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की गाइडलाइन को मंजूरी
नई दिल्ली। देश के सर्वोच्च अदालत ने आईपीसी की धारा 498ए के बढ़ते दुरुपयोग को ध्यान में रखते हुए बड़ा फैसला दिया है। कोर्ट ने घरेलू हिंसा और दहेज प्रताड़ना के मामलों में फैसला सुनाया है कि अब इस मामले में केस दर्ज होने के दो महीने तक गिरफ्तारी नहीं होगी और केस को फैमिली वेलफेयर कमेटी को भेजा जाएगा। ये वही मामला है जिसमें आईपीएस महिला की तरफ से पति और ससुराल वालों के खिलाफ झूठे मुकदमे दर्ज कराए गए थे।
मामले में पीड़ित पति और उसके पिता को तीन महीने से ज्यादा वक्त तक जेल में रहना पड़ा था। सुप्रीम कोर्ट ने धारा 498ए (दहेज उत्पीड़न) के दुरुपयोग के मामलों में इलाहाबाद हाईकोर्ट की तरफ से जारी दिशा-निर्देशों को मंजूरी दे दी है । इन गाइडलाइंस के तहत अब जब तक शुरुआती जांच पूरी न हो जाए और पुलिस वरिष्ठ अधिकारियों की समीक्षा के बाद मंजूरी न दे दे, तब तक पति या उसके परिजनों की गिरफ्तारी तुरंत नहीं की जा सकेगी। एक दिन पहले की सुप्रीम कोर्ट ने अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल कर उक्त अहम मामले का निपटारा किया था
बच्चों की अभिरक्षा पर टिप्पणी, निर्दोषों को मिली सुरक्षा
बेटी की अभिरक्षा के मुद्दे पर पीठ ने कहा, बच्ची की अभिरक्षा मां के पास होगी। पिता और उसके परिवार को पहले तीन महीनों तक बच्ची से मिलने का निगरानी में अधिकार होगा और उसके बाद बच्ची की सुविधा और भलाई के आधार पर, हर महीने के पहले रविवार को सुबह नौ बजे से शाम पांच बजे तक बच्ची के शिक्षण स्थल या स्कूल के नियमों और विनियमों के तहत अनुमति के अनुसार, मुलाकात की जा सकेगी। 498 के कई मामलों में झूठे या बढ़ा- चढ़ाकर आरोप लगाए जाते हैं, जिससे निर्दोष व्यक्तियों को जेल जाना पड़ता है। एफआईआर दर्ज होने के बाद दो महीने तक गिरफ्तारी पर रोक रहेगी, फैसला न्यायिक संतुलन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, जिससे दहेज प्रताड़ना के वास्तविक मामलों को न्याय मिल सकेगा।
यह भी पढ़ें : सिर्फ आर्य समाज मंदिर का प्रमाणपत्र विवाह का वैध सबूत नहीं: हाईकोर्ट