नई दिल्ली। मानसून का सीजन खत्म होने के बाद सर्दी के मौसम की शुरुआत होने वाली है। सर्दियों के आने से पहले इस बात की चर्चा छिड़ी हुई है कि क्या बारिश की तरह इस साल ठंड भी ज्यादा पड़ेगी ? ला नीना के कारण यह बहस छिड़ गई है। ला नीना एक जलवायु परिघटना है, जिसका इस साल सर्दियों पर सीधा प्रभाव पड़ सकता है। ला नीना ठंडी जलवायु का प्रतीक है। ला नीना अल नीनो के उलट होता है।
भारत में ला नीना की वजह से ज्यादा ठंड पड़े की संभावना है। उत्तर भारत में विशेष तौर पर इसका प्रभाव देखने को मिलेगा । यह मौसम पैटर्न प्रशांत महासागर को ठंडा करने का काम है। ऐसे में यह उत्तर भारत में नवंबर-दिसंबर के महीने में अधिक पाला पड़ने और शीत लहरों का कारण बनता है। अमेरिकी राष्ट्रीय मौसम सेवा के जलवायु पूर्वानुमान केंद्र ने अक्तूबर से दिसंबर के बीच ला नीना विकसित होने की 71 फीसदी तक संभावना जताई है।
यह भी पढ़ें : पीएम मोदी का राष्ट्र के नाम संबोधन : विदेशी वस्तुओं से पाएं मुक्ति अपनाएं स्वदेशी
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने सितंबर की शुरुआत में ही ला नीना की बात की है। संगठन की तरफ से बताया गया कि ला नीना मौसम और जलवायु पैटर्न को प्रभावित करने के लिए वापस आ सकता है।संगठन ने इस घटना के अस्थायी शीतलन प्रभाव के बावजूद ज्यादातर देशों में वैश्विक तापमान औसत से ऊपर रहने का अनुमान जताया है। भारत में भारी बारिश के बाद लोगों को भीषण ठंड की मार भी झेलनी पड़ सकती है।
प्रशांत समुद्री पर्यावरण लैब के मुताबिक, ला नीना की विशेषता भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में असामान्य रूप से ठंडे समुद्री तापमान है, तो वहीं अल नीनो भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में असामान्य रूप से गर्म समुद्री तापमान के कारण है। मूल तौर पर इस शब्द का क्रिसमस से संबंध है । सर्दियों के त्योहार के कारण इसका इस्तेमाल किया गया । स्पेनिश में अल नीनो का अर्थ ईसा मसीह का बच्चा है।
प्रशांत महासागर में होने वाला मौसमी पैटर्न ला नीना के कारण भूमध्यरेखीय प्रशांत इलाके में समुद्र की सतह का तापमान औसत से नीचे चला जाता है। ला नीना से प्रभावित होने वाले देशों में भारत का नाम अहम है। भूमध्य रेखा के पास भारत मौजूद है। ला नीना की वजह से खासतौर पर उत्तर भारत के राज्यों में ज्यादा ठंड पड़ सकती है।
यह भी पढ़ें : सांसद संजय सिंह के बिगड़े बोल : ट्रम्प से जूते पड़ने पर भाजपाई चिल्ला रहे स्वदेशी