नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने आवास खरीदारों से धोखाधड़ी करने के लिए वैकों और रियल एस्टेट डेवलपर्स के वीच ‘नापाक’ गठजोड़ का उल्लेख करते हुए सीवीआई को सुपरटेक लिमिटेड सहित एनसीआर के विल्डरों के खिलाफ सात प्रारंभिक जांच दर्ज करने का निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने प्रथम दृष्टया पाया कि नोएडा, गुरुग्राम, यमुना एक्सप्रेसवे, ग्रेटर नोएडा, मोहाली, मुंबई, कोलकाता और इलाहावाद में वैकों और विल्डरों के वीच साठगांठ है। पीठ ने सीवीआई द्वारा दाखिल हलफनामे का संज्ञान लिया और उत्तर प्रदेश, हरियाणा के डीजीपी को एसआईटी गठित करने के लिए पुलिस उपाधीक्षक, निरीक्षक, कांस्टेवल की सूची एजेंसी को देने का निर्देश दिया।
शीर्ष अदालत ने ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण, नोएडा प्राधिकरण के सीईओ प्रशासकों, आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के सचिव, भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान और आरबीआई को निर्देश दिया कि वे एसआईटी को आवश्यक सहायता प्रदान करने के लिए एक सप्ताह के भीतर अपने वरिष्ठतम अधिकारियों में से एक नोडल अधिकारी को नामित करें।
पीठ ने कहा कि वह मासिक आधार पर जांच की स्थिति की निगरानी करेगी। इस मामले में ‘एमिकस क्यूरी’ (अदालत का सहयोग करने वाले वकील) अधिवक्ता राजीव जैन ने सुपरटेक को आवास खरीदारों के साथ धोखाधड़ी करने में “मुख्य दोषी” वताया, जवकि कॉरपोरेशन वैक ने भुगतान योजनाओं के माध्यम से विल्डरों को 2,700 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान किया।
अदालत को बताया गया कि सुपरटेक के पास छह शहरों में 21 परियोजनाएं थीं, जिनमें 19 वैकों के साथ करार था। इनमें 800 ऐसे आवास खरीदार शामिल है जो धोखाधड़ी का शिकार हुए। ‘एमिकस क्यूरी’ की रिपोर्ट से पता चला है कि अकेले सुपरटेक ने 1998 से 5,157.86 करोड़ रुपए का ऋण प्राप्त किया था। रिपोर्ट में कहा गया कि इसलिए सुपरटेक और वैकों के वीच अंतर्निहित साठगांठ की प्राथमिकता के आधार पर जांच की आवश्यकता है।
भुगतान योजना के तहत, वैक स्वीकृत राशि को सीधे विल्डरों के खातों में वितरित करते हैं, जिन्हें तव तक स्वीकृत ऋण राशि पर ईएमआई का भुगतान करना होता है जब तक कि फ्लैट घर खरीदारों को नहीं सौप दिए जाते । त्रिपक्षीय समझौते के अनुसार, जव विल्डरों ने बैकों को ईएमआई का भुगतान करने में चूक करना शुरू कर दिया, तो वैकों आवास खरीदारों से ईएमआई मांगी।
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