दो हिस्सों में टूट रहा अफ्रीका, 3500 किमी लंबी दरार

जमीन के नीचे से होने वाले ज्वालामुखी और भूकंप बने कारण

नई दिल्ली। अफ्रीका धीरे-धीरे दो हिस्सों में बंट रहा है। अब वैज्ञानिकों ने पुष्टि की है कि पृथ्वी की गहराई से निकलने वाला सुपरप्लम इसका कारण है। केन्या, मलावी और लाल सागर में मिली गैसों की रासायनिक निशानियां बताती हैं कि यह सुपरप्लम 2900 किमी की गहराई से आ रहा है। सुपरप्लम से ज्वालामुखी और भूकंप बढ़ रहे हैं। भविष्य में यह एक नया महासागर बना सकता है। अफ्रीका महाद्वीप में एक ऐसी भूवैज्ञानिक घटना हो रही है, जो इसे धीरे-धीरे दो हिस्सों में बांट रही है।

इस प्रक्रिया को पूर्वी अफ्रीकी रिफ्ट सिस्टम कहा जाता है। ये 3500 किमी लंबा है। 3.5 करोड़ साल से चल रहा है। वैज्ञानिकों ने हाल ही में खोजा कि पृथ्वी की गहराई से निकलने वाला गर्म चट्टानों का एक विशाल सुपरप्लम इसके टूटने और ज्वालामुखी गतिविधियों का कारण है। केन्या, मलावी और लाल सागर में मिले गैसों के रासायनिक निशान इस सुपरप्लम की मौजूदगी की पुष्टि करते हैं।

पूर्वी अफ्रीकी रिफ्ट सिस्टम क्या है
श्व्रक्रस् पृथ्वी का सबसे बड़ा सक्रिय महाद्वीपीय रिट सिस्टम है, जो अफ्रीका को दो हिस्सों में बांट रहा है। यह प्रक्रिया 3.5 करोड़ साल पहले शुरू हुई और अब भी जारी है। यह लाल सागर (उार-पूर्वी अफ्रीका) से मोजाम्बिक (दक्षिणी अफ्रीका) तक फैला है। करीब 3500 किमी लंबे रिट में घाटियां और दरारें बनी हैं। इसने इथियोपिया में एर्टा एले ज्वालामुखी जैसी गतिविधियों को बढ़ाया, जिससे लावा झीलें बनीं।

सुपरप्लम : पृथ्वी की गहराई का रहस्य
नए अध्ययन में पता चला कि श्व्रक्रस् के नीचे पृथ्वी की गहराई में एक सुपरप्लम है। यह गर्म, तरल चट्टानों का एक विशाल उभार है, जो पृथ्वी के मेंटल (पृथ्वी की मध्य परत) और कोर (केंद्र) के बीच से शुरू होता है, यानी कर 2900 किमी की गहराई से। यह सुपरप्लम ऊपर उठकर अफ्रीका की ठोस लिथोस्फेयर पर दबाव डाल रहा है। लिथोस्फेयर को तोड़ रहा है, जिससे दरारें और ज्वालामुखी गतिविधियां बढ़ रही हैं। हवाई द्वीप समूह की तरह नहीं, जो एक पतली धारा से बना, बल्कि यह एक विशाल गर्म द्रव्यमान है जो पूरे क्षेत्र को प्रभावित कर रहा है।

नई खोज कैसे हुई
वैज्ञानिकों ने केन्या के मेंगाई भूतापीय क्षेत्र में गैसों का अध्ययन किया। नियॉन आइसोटोप्स की जांच की। ये नोबल गैसें (जैसे हीलियम, नियॉन) रासायनिक रूप से स्थिर होती हैं। लंबे समय तक रहती हैं,
इसलिए इनका उपयोग भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं को ट्रेस करने में होता है। मेंगाई की गैसों में गहरे मेंटल की रासायनिक निशानी मिली, जो पृथ्वी के कोर-मेंटल सीमा से आ रही थी।

सुपरप्लम ने अफ्रीका में कई बदलाव किए
रिट का निर्माण : सुपरप्लम की गर्मी और दबाव ने लिथोस्फेयर को पतला और कमजोर किया, जिससे दरारें बनीं।
ज्वालामुखी गतिविधियां : इथियोपिया, केन्या और तंजानिया में ज्वालामुखी सक्रिय हुए. एर्टा एले जैसे ज्वालामुखी इसका उदाहरण हैं।
भूकंपीय गतिविधियां : रिट क्षेत्र में भूकंप आम हैं,क्योंकि सुपरप्लम लगातार दबाव डाल रहा है।
भविष्य का महासागर: वैज्ञानिकों का मानना है कि लाखों साल बाद श्व्रक्रस् एक नया महासागर बना सकता है, जैसे लाल सागर आज बन रहा है ।

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