नई दिल्ली। वैज्ञानिकों ने पृथ्वी को लेकर एक चौंकाने वाला खुलासा किया है। उन्होंने बताया है। कि पांच अगस्त को पृथ्वी के घूर्णन की गति सामान्य से कम हो गई थी। इसकी वजह से दिन थोड़ा लंबा हो गया, लेकिन यह अंतर सामान्य लोगों को समझ नहीं आया। वैज्ञानिकों ने इस घटना को बेहद अहम बताया है। उनका कहना है कि इस घटना से उन शक्तियों के बारे में जानकारी मिल सकती है, जो पृथ्वी के घूर्णन को प्रभावित करती है। पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है। • और सूर्य का चक्कर लगाती है। पृथ्वी की घूर्णन गति भूमध्य रेखा पर करीब 1,670 किलोमीटर प्रति घंटा है। पृथ्वी करीब 107,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से सूर्य की परिक्रमा करती है।
वैज्ञानिकों ने खुलासा करते हुए कहा कि पांच अगस्त को पृथ्वी का घूर्णन करीब 86,400.00145 सेकेंड तक चला। यह औसत से करीब 1.45 मिलीसेकेंड ज्यादा है। पृथ्वी की घूमने की गति में होना वाला यह बदलाव छोटा है, जिसकी वजह से परमाणु घड़ियों और खगोलीय प्रेक्षणों का इस्तेमाल किया गया और सटीक मापन से इसका पता लगाया गया।
86,400 सेकंड का होता है, जिसमें हवा के पैटर्न, समुद्री धाराओं और पृथ्वी के आंतरिक भाग में होने वाली गतिविधियों में बदलाव की वजह से छोटे-छोटे परिवर्तन स्वाभाविक रूप से होते हैं। साथ ही चंद्रमा का ज्वारीय खिंचाव पृथ्वी के घूर्णन की गति को धीमा करने की भी मुख्य वजह है वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के घूर्णन की गति को लेकर कहा कि दक्षिणी गोलार्ध में वायुमंडलीय परिस्थितियों से पांच अगस्त को पृथ्वी के घूमने की गति में आई जुड़ी थी।
कुछ इलाकों में सामान्य से अधिक तेज हवाओं की वजह से पृथ्वी की सतह पर एक मिनट की रुकावट आई। इससे दिन की एक दिन यानी सौर दिवस 24 घंटे या लंबाई में मिलीसेकंड की बढ़ोत्तरी हुई है।चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण से समुद्री धाराएं प्रभावित होती हैं, जिसने इसमें योगदान दिया। वैज्ञानिकों का कहना है कि जब ज्वारीय खिंचाव थोड़ा अधिक होता है, तो ऐसी घटनाएं सामनाएं आती हैं। पृथ्वी के पिघले हुए बाहरी कोर के अंदर की गतिविधियां भी घूर्णन गति पर प्रभाव डालती
हैं ।
वैज्ञानिकों ने कहा कि पृथ्वी के घूर्णन में एक मिलीसेकंड से थोड़ा अधिक का भी बदलाव जीपीएस नेविगेशन और उपग्रह संचार जैसी अत्यधिक सटीक प्रणालियों पर प्रभाव डाल सकता है। अगर ऐसा होता है तो समय से जुड़ी कई गणनाएं गलत साबित हो सकती हैं।
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