कठपुतली प्रदर्शन, मध्यप्रदेश के साथ अन्य राज्यों के नृत्यों की प्रस्तुति, महोत्सव में शिल्प-व्यंजन भी
भोपाल । मप्र जनजातीय संग्रहालय के 12वें वर्षगांठ के अवसर पर दूसरे दिन शनिवार को दिलीप मासूम-भोपाल द्वारा कठपुतली प्रदर्शन किया गया जिसमें उन्होंने कई हास्य एवं जागरूकता के संदेश देते हुए विभिन्न कठपुतलियों के माध्यम से प्रदर्शन किया। महोत्सव के अवसर पर संग्रहालय परिसर में बने जनजाति आवासों में आमंत्रित कलाकारों द्वारा उनके पारंपरिक व्यंजनों को भी पहली बार प्रदर्शित एवं विक्रय किया जारहा है, जिसमें भील, गोण्ड, बैगा, कोरकू के व्यंजन का स्वाद पर्यटक ले सकेंगे।
महोत्सव के दूसरे दिन संध्या की शुरुआत चिरजा एवं मांड गायन से हुई। जयपुर, राजस्थान की अनिता कवर एवं साथी द्वारा गायन प्रस्तुति दी गई। उन्होंने इसके बाद महोत्सव में नृत्य प्रस्तुतियां दी गईं, जिसमें कोरकू जनजातीय गदलीथापटी नृत्य उमरगोडा बारस्कर एवं साथीबैतूल द्वारा, वीरनाट्यम नृत्य ए. सतीशविशाखपटनम द्वारा, बैगा जनजातीय करमा-घोड़ीपैठाई नृत्य धनीराम बगदरिया एवं साथी-डिण्डोरी द्वारा प्रस्तुत किया गया।
भगवान वीरभद्र के समान में वीरनाट्यम नृत्य
वीरनाट्यम आंध्रप्रदेश का एक प्राचीन धार्मिक नृत्य रूप है, जिसे विशाखापटनम के ए. सतीश और उनके सहयोगियों ने प्रस्तुत किया। यह नृत्य भगवान वीरभद्र के समान में किया जाता है। यह नृत्य वीरमुस्ती समुदाय के पुरुषों द्वारा शिव मंदिरों में विशेष रूप से पूर्वी और पश्चिमी गोदावरी, कुरनूल, अनंतपुर और खमम जिलों में किया जाता है। वीर का अर्थ है बहादुर और नाट्यम का अर्थ है नृत्य, इसलिए वीरनाट्यम का अर्थ है बहादुरों का नृत्य। नृत्य वीरनम या युद्ध-ढोल की ताल पर किया जाता है।
धार्मिक अवसरों पर होता है कुनबी नृत्य
शांतादुर्गा कल्चरल एसोसिएशन ग्रुप के कलाकारों ने कुनबी नृत्य प्रस्तुत किया। गोवा में कुनबी नृत्य एक जनजातीय लोक नृत्य है, जो गोवा के कुनबी समुदाय से संबंधित है। यह नृत्य सरल और सामाजिक विषयों को दर्शाता है। यह विभिन्न सामाजिक अवसरों पर किया जाता है जिसमें शादी, फसल की बोबाई-कटाई और अन्य समारोह में नृत्य किया जाता है।
चरक पूजा उत्सव पर होता है नटुआ नृत्य
पश्चिम बंगाल के बिरेन कालिंदी और कलाकारों ने बताया कि नटुआ नृत्य पश्चिम बंगाल का एक प्रसिद्ध लोक नृत्य है। यह नृत्य पुरुलिया जिले में किया जाता है और यह एक प्राचीन नृत्य है, जो चैत्र संक्रांति पर चरक पूजा उत्सव के दौरान किया जाता है। यह नृत्य आमतौर पर पुरुष नर्तकों द्वारा किया जाता है। नृत्य के दौरान ढोल, झांझ, घंटी और अन्य वाद्य यंत्र बजाए जाते हैं। यह नृत्य सामाजिक और धार्मिक अवसरों पर भी किया जाता है।
आत्मा और परमात्मा का प्रेम महारास चरखुला नृत्य
इस नृत्य को मथुरा के मुरलीदास तिवारी और सहयोगियों ने प्रस्तुत किया। महारास का अर्थ है आत्मा और परमात्मा का प्रेम। यह नृत्य भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति और प्रेम का प्रतीक है, जो विभिन्न क्षेत्रों में प्रचलित है। चरखुला नृत्य ब्रज में किया जाता है। यह एक लोक नृत्य है, जो नृत्य महिलाओं द्वारा किया जाता है। बहु स्तरीय गोलाकार पिरामिड रखते हुए 108 दीप जलाते हैं और श्रीकृष्ण की आराधना करते हैं। चरखुला नृत्य आमतौर पर होली के अवसर पर किया जाता है, विशेष रूप से होली के तीसरे दिन श्रीराधा के जन्म दिवस पर।
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