नई दिल्ली। भारत में बुजुर्गों की सेवा सिर्फ जिमेदारी नहीं, औलादों के लिए ये अवसर किसी आशीर्वाद से कम नहीं होता। यहां मां-बाप को भगवान का दर्जा दिया जाता है और उनका ख्याल रखना हमारी परंपरा में रचा-बसा है, लेकिन आज जब जिंदगी स्पीड मोड पर चल रही है, बच्चे बाहर पढ़ने- कमाने जा रहे हैं और वक्त लगातार हाथ से फिसल रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अब सिर्फ भावनाएं काफी हैं या उनकी मदद के लिए हर वक्त कोई न कोई साथ में जरूर होना…
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