नयी दिल्ली/ मथुरा। वृंदावन के प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर में दर्शन व्यवस्था को लेकर सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी ने धार्मिक संस्थानों में आस्था और व्यावसायीकरण के बीच संतुलन पर नई बहस छेड़ दी है। मंदिर से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस सूर्यकांत की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि वर्तमान दर्शन व्यवस्था “भगवान के शोषण” जैसी है, जहां दोपहर में दर्शन बंद होने के बाद भी विशेष पूजा के नाम पर भगवान को विश्राम तक नहीं दिया जाता।
पैसे वालों के लिए विशेष व्यवस्था’ पर सवाल
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि इस समयावधि में अधिक धन देने वाले श्रद्धालुओं को पर्दे के पीछे विशेष पूजा की अनुमति दी जाती है। कोर्ट की टिप्पणी ने यह सवाल खड़ा किया कि क्या धार्मिक परंपराओं के नाम पर असमानता और विशेषाधिकार को बढ़ावा दिया जा सकता है। पीठ ने कहा कि भगवान के विश्राम का समय भी अब कमाई का जरिया बनता जा रहा है, जो आस्था की मूल भावना के खिलाफ है।
परंपरा बनाम भीड़ प्रबंधन
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कोर्ट को बताया कि दर्शन के समय और व्यवस्थाओं में बदलाव सुरक्षा कारणों से किए गए थे, ताकि भगदड़ और अव्यवस्था से बचा जा सके। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि यह केवल टाइमिंग का नहीं, बल्कि सदियों पुरानी परंपराओं से जुड़ा मामला है। हालांकि कोर्ट ने इस तर्क को स्वीकार करते हुए भी यह संकेत दिया कि परंपरा की आड़ में विशेष दर्शन की अनुमति नहीं दी जा सकती।
हाई पावर्ड कमिटी और सरकार से जवाब तलब
सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर प्रशासन, उत्तर प्रदेश सरकार और पहले से गठित हाई पावर्ड कमिटी से इस पूरे मामले पर जवाब मांगा है। यह कमिटी मंदिर में बुनियादी सुविधाओं, भीड़ प्रबंधन और आसपास के विकास की जिम्मेदारी संभाल रही है। साथ ही, यूपी सरकार द्वारा लाए गए श्री बांके बिहारी जी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश 2025 को लेकर भी कोर्ट के समक्ष सवाल उठे हैं, जिसमें मंदिर प्रबंधन को राज्य नियंत्रित ट्रस्ट के अधीन लाने का प्रस्ताव है।
धार्मिक संस्थानों में सरकारी दखल की बहस
यह मामला केवल दर्शन व्यवस्था तक सीमित नहीं है। इसके साथ यह बड़ा सवाल भी जुड़ा है कि सरकार का धार्मिक संस्थानों के प्रबंधन में कितना दखल होना चाहिए। 1939 की पारंपरिक मैनेजमेंट स्कीम और नए अध्यादेश के बीच टकराव ने इस बहस को और गहरा कर दिया है।
जनवरी में होगी अगली सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिए हैं कि विशेष दर्शन और पूजा की मौजूदा व्यवस्था पर गंभीर पुनर्विचार की जरूरत है। अब इस मामले की अगली सुनवाई जनवरी के पहले हफ्ते में होगी, जहां यह तय हो सकता है कि बांके बिहारी मंदिर में आस्था, समानता और परंपरा के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए।
