धरती के समीप तैर रहा सूरज से 3400 गुना भारी बादल

पहली बार आया नजर, वैज्ञानिकों ने नाम रखा ‘ईओएस’, 40 चंद्रमाओं जितना आकार

नई दिल्ली । ब्रह्मांड में अनगिनत ऐसी चीजे हैं जिनके भारे में शायद इंसान अभी कुछ भी नहीं जानते। हालांकि विज्ञान हर दिन कुछ ना कुछ नया खोजकर ला रहा है। हाल ही में एक और हैरान कर देने वाला खुलासा किया है। वैज्ञानिकों ने जमीन के बहुत नजदीक एक रहस्यमय बादल की तलाश की है। कहा जा रहा है कि यह बादल अभी तक हमारी नजरों से छिपा हुआ था।

रिपोर्ट के मुताबिक हमारा सूरज एक बहुत बड़े इलाके में मौजूद है, जिसे ‘लोकल बबल’ कहा जाता है। इस नए खोजे गए गैसीय बादल को ‘ईओस’ नाम दिया गया है। ईओस एक मॉलिक्यूलर क्लाउड यानी अणुओं वाला गैस का बादल है। ऐसे बादल पूरे ब्रह्मांड में पाए जाते हैं और इनमें से कई हमारे मिल्की वे गैलेक्सी में भी हैं। यह मुख्य रूप से हाइड्रोजन गैस और धूल से बने होते हैं।

ईओस धरती से महज 300 लाइट ईयर्स दूर है
27 अप्रैल 2025 को वैज्ञानिकों ने इस बादल की खोज के बारे में सार्वजनिक तौर पर बताया है। साथ ही बताया कि ईओस धरती से महज 300 लाइट ईयर्स दूर है, जो इसे हमारे सौर मंडल के सबसे पास देखा गया ऐसा पहला बादल बनाता है। यह आकार में भी बहुत बड़ा है और सूरज से करीब 3400 गुना भारी। अगर हम इसे धरती से देख पाते तो यह आकाश में 40 पूरे चंद्रमाओं जितना बड़ा दिखता।

60 लाख साल बाद हो जाएगा खत्म
रिपोर्ट में बताया कि ईओस का आकार एक आधे चांद जैसा है और यह लोकल बदल के बॉर्डर पर तैर रहा है। हालांकि यह बादल हमेशा नहीं रहेगा और अगले 60 लाख सालों में धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा वैज्ञानिकों ने कोरिया के सैटेलाइट STSAT-1 पर लगे एक खास उपकरण (FIMS-SPEAR) का इस्तेमाल किया, जो अल्ट्रावायलेट रोशनी में हाइड्रोजन के अणुओं को देख सकता है। यह पहली बार है जब किसी गैसीय बादल को सीधे अल्ट्रावायलेट रोशनी में देखकर खोजा गया है।

कैसे बनते हैं सितारे, अब पता चल जाएगा
वैज्ञानिकों का कहना है कि अब हमारे पास यह जानने का मौका है कि सितारे और ग्रह कैसे बनते हैं, क्योंकि ऐसे बादलों में वही कच्चा माल होता है जिससे नई तारों और ग्रहों की रचना होती है।

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