नई दिल्ली। क्या आपने कभी सोचा है कि कोई इंसान सिर्फ पानी और सूरज की रोशनी पर जिंदा रह सकता है? यह सुनना किसी साइंस फिक्शन फिल्म जैसा लगता है, लेकिन भारत के हिरा रतन मानेक (HRM) ने यह कर दिखाया। उन्होंने पूरे 411 दिन बिना खाना खाए सिर्फ पानी और सूरज की किरणों से अपनी जिंदगी गुजारी। यह घटना न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया में सनसनी बन गई थी।
हिरा रतन मानेक पेशे से इंजीनियर थे और उनका जन्म केरल के कोझिकोड में हुआ था। साल 2022 में 85 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। लेकिन उनकी पहचान हमेशा उस चमत्कारिक प्रयोग से जुड़ी रहेगी, जिसमें उन्होंने यह दावा किया कि उनकी ऊर्जा का असली स्रोत सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य को देखना यानी सनगेजिंग था।
साल 1995 में उन्होंने यह अनोखा प्रयोग किया। इस दौरान वे 411 दिन तक बिना ठोस भोजन के सिर्फ पानी और सूर्य की ऊर्जा पर निर्भर रहे। उनकी इस यात्रा को डॉक्टर्स और वैज्ञानिकों की एक बड़ी टीम ने करीब से मॉनिटर किया।
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डॉक्टरों ने क्या पाया? : इस प्रयोग की निगरानी डॉ. सुधीर शाह और उनकी टीम ने की। 24 डॉक्टर्स ने लगातार मानेक की जांच की और पाया कि इतने लंबे उपवास के बावजूद उनका स्वास्थ्य सामान्य था । उनके ब्रेन स्कैन में पाया गया कि उनकी पीनियल ग्लैंड सामान्य से बड़ी थी, मेलाटोनिन और सेरोटोनिन लेवल बढ़े हुए थे और न्यूरॉन्स में असामान्य गतिविधि दिख रही थी। यानी, भूख से कमजोर होने के बजाय उनका शरीर और भी एडजस्ट करता दिखा।
दुनिया में कैसा रहा असर ? : हिरा रतन मानेक ने अपनी किताब सनगेजिंग में इस टेक्नीक और दर्शन को समझाया। वे 100 से ज्यादा देशों में गए और लेकर दिए । 2002 में तो NASA और यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिल्वेनिया के वैज्ञानिकों ने भी उनका अध्ययन किया, लेकिन रिपोर्ट कभी सार्वजनिक नहीं हुई।
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लोगों और वैज्ञानिकों की प्रतिक्रिया क्या रही ? : कई लोगों ने सनगेजिंग प्रोटोकॉल अपनाने का दावा किया और कहा कि उन्हें ज्यादा ऊर्जा, मानसिक स्पष्टता और कम भूख का अनुभव हुआ । लेकिन मेडिकल एक्सपर्ट्स ने इसे छद्म- विज्ञान करार दिया और चेतावनी दी कि बिना वैज्ञानिक आधार के ऐसे प्रयोग खतरनाक हो सकते हैं।
इसके बावजूद सवाल आज भी बना हुआ है- : अगर पौधे सूरज की रोशनी से जी सकते हैं, तो क्या इंसान भी ऐसा कर सकते हैं? हिरा रतन मानेक का प्रयोग आज भी रहस्य और विवाद के बीच खड़ा है। एक ओर वे उन लोगों के लिए प्रेरणा हैं जो विज्ञान से परे नई संभावनाओं की तलाश करना चाहते हैं, वहीं दूसरी ओर वैज्ञानिक दुनिया अब भी उनके दावों पर संदेह करते हैं।
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