नीलगायों को क्यों कहा जाता है नीलगाय की सच्चाई जानकर हो जाएंगे हैरान

नई दिल्ली। दुनिया में कई तरह के जीव-जंतु पाए जाते हैं। सभी जीवों की अलग-अलग खासियत और विशेषताएं होती हैं। इनमें कुछ जीव बेहद खतरनाक होते हैं, तो कुछ बेहद शांत होते हैं। कुछ जानवरों के बारे में जानकर लोगों को यकीन नहीं होता है। गाय के बारे में बच्चा-बच्चा जानता है। भारत में गाय को मां का दर्जा मिला हुआ है। लेकिन देश में नीलगाय भी काफी प्रसिद्ध है। आप में ज्यादातर लोग नीलगाय के बारे में जानते होंगे। लेकिन इसका रंग न नीला होता है और न यह गाय है, तो फिर इसे नील गाय क्यों कहा जाता है ?

नीलगाय हर मौसम में दिखाई देती है । देश के अलग-अलग जगहों पर नीलगाय को देखा जा सकता है। खासकर ग्रामीण इलाकों में काफी नीलगाय देखी जाती हैं । सबसे खास बात यह है कि नीलगाय हमेशा झुंड में रहती हैं।नीलगाय स्लेटी रंग की होती हैं और देखने में घोड़े की तरह लगती है। नीलगाय हिरण की तरह लंबी छलांग लगाती है। नीलगाय का पिछला हिस्सा अगले हिस्से से कम ऊंचा होता है, जिससे यह घोड़े की तरह दौड़ नहीं सकती है। नर नीलगाय ग्रे रंग का होता है, जबकि मादा का रंग भूरा होता है।दूर से देखने पर नर नीलगाय नीले रंग का नजर आता है, तो वहीं मादा अपने कान के रंग की वजह से गाय की तरह दिखती है। रंग और कान की वजह से इसे नीलगाय कहा जाता है।

कई लोगों को इसे लेकर काफी भ्रम रहता है। नीलगाय को नीलगाय इसलिए कहते हैं, क्योंकि इसका रंग नीला- भूरा (नील) होता है और इसका कान गाय की तरह दिखता है। यह मृग श्रेणी का जानवर है। नीलगाय काफी लंबे समय तक बिना पानी के रह सकते हैं। यह जानवर दिन में घूमते रहते हैं और घास, झाड़ियों के पत्ते आदि खाते हैं। इनको जंगलों में रहना पसंद नहीं है। यह घास के मैदानों में रहना पसंद करते हैं।नीलगाय को भारत के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में एक संरक्षित जीव के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। हालांकि, इसे मारने के लिए प्रशासन की अनुमति ली जा सकती है। नीलगाय से किसानों को काफी नुकसान होता है, क्योंकि यह फसलों को बहुत नुकसान पहुंचाती हैं।

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