पाकिस्तानी कहना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का अपराध नहीं

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा के दुर्भावना से कहे जाने के वावजूद किसी के ये ‘मियां-तियां’ और ‘पाकिस्तानी’ जैसे शब्दों इस्तेमाल धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने अपराध नहीं है। न्यायमूर्ति वी. वी. नागरत्ना, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने झारखंड चास स्थित अनुमंडल कार्यालय में आरटीआई तह एक उर्दू अनुवादक एवं कार्यवाहक पिक द्वारा दायर आपराधिक मामले में एक क्ति को आरोपमुक्त कर दिया।

न्यायालय के 11 फरवरी के आदेश में कहा कि अपीलकर्ता पर सूचनादाता को ‘मियां-तियां’ , ‘पाकिस्तानी’ कहकर उसकी धार्मिक बनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप है। संदेह, ये वातें दुर्भावना से कही गई है। तांकि, यह सूचनादाता की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के समान नहीं है । इसलिए, हमारा मानना है कि अपीलकर्ता को भारतीय दंड संहिता की धारा 298 के तहत भी वरी किया जाना चाहिए।

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आईपीसी की धारा 298 धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से जानबूझकर कहे गए शब्दों या इशारों से संबंधित है। रिकॉर्ड में यह वात सामने आई है कि आरोपी हरिनंदन सिह ने अतिरिक्त समाहर्ता -सह- प्रथम अपीलीय प्राधिकारी, वोकारो से सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत जानकारी मांगी थी और सूचना उन्हें भेज दी गई थी। हालांकि, उन्होंने कथित तौर पर कार्यालय द्वारा पंजीकृत डाक के माध्यम से भेजे गए दस्तावेजों में हेरफेर करने और दस्तावेजों में हेरफेर के झूठे आरोप लगाने के बाद अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष अपील दायर की।

अपीलीय प्राधिकार ने अनुवादक को व्यक्तिगत रूप से अपीलकर्ता को सूचना देने का निर्देश दिया। अनुमंडल कार्यालय, चास के अर्दली के साथ सूचनादाता 18 नवंबर, 2020 को सूचना देने के लिए सुप्रीम कोर्ट एक मामले में की टिप्पणी आरोपी के घर पहुंचा। आरोपी ने पहले तो दस्तावेज लेने से इनकार कर दिया, लेकिन सूचनादाता के जोर देने पर उसे स्वीकार कर लिया । यह आरोप है कि आरोपी ने सूचनादाता के धर्म का जिक्र करते हुए उसके साथ दुर्व्यवहार किया और उसके विरुद्ध आपराधिक वल का प्रयोग किया। इसके वाद अनुवादक ने आरोपी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई।

जांच के वाद निचली अदालत ने आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 353 (लोक सेवक पर हमला या आपराधिक वल का प्रयोग) और 504 (जानवूझकर अपमान) के तहत भी आरोप तय करने का आदेश दिया। झारखंड उच्च न्यायालय ने कार्यवाही रद्द करने के अनुरोध वाली आरोपी की याचिका खारिज कर दी। उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने उसे जानबूझकर अपमान करने के अपराध से मुक्त कर दिया और कहा कि धारा 353 के अलावा ‘उसकी ओर से ऐसा कोई कार्य नहीं किया गया, जिससे शांति भंग हो सकती हो।’ न्यायालय ने कहा, ‘हम उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज करते है, जिसमें निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा गया था।

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