नई दिल्ली। आज के दौर में जहां हर जगह लागत कम करने और काम में तेजी लाने पर जोर दिया जाता है, वहीं जापान ने कभी इंसानियत और समर्पण का ऐसा उदाहरण पेश किया, जिसे दुनिया लंबे समय तक याद रखेगी। जापान के होक्काइडो द्वीप पर मौजूद क्यू- शिराताकी स्टेशन साल 2016 तक सिर्फ एक हाई स्कूल छात्रा की पढ़ाई सुनिश्चित करने के लिए चलता रहा। इस कहानी ने पूरी दुनिया में सुर्खियां बटोरीं। यह सिर्फ एक रेलवे स्टेशन की कहानी नहीं है, बल्कि यह बताती है कि जब बुनियादी ढांचे को मुनाफे के लिए नहीं, बल्कि लोगों के लिए बनाए रखा जाता है तो वह इंसानियत की सच्ची तस्वीर पेश करता है ।
यह भी पढ़ें : चुनाव आयोग की राहुल गांधी को दो टूक : सात दिन में हलफनामा दें या देश से माफी मांगें
जापान का यह फैसला दिखाता है कि शिक्षा के लिए समर्थन कितनी दूर तक दिया जा सकता है। मार्च 2016 में, काना के ग्रेजुएट होते ही और शैक्षणिक वर्ष खत्म होने पर स्टेशन को बंद कर दिया गया। यह फैसला आर्थिक रूप से तो पहले ही तय था, लेकिन इसे तब तक टाल दिया गया जब तक छात्रा की पढ़ाई पूरी नहीं हो गई। ट्रेन के समय को देखते हुए काना किसी भी तरह की स्कूल के बाद की गतिविधियों में हिस्सा नहीं ले पाती थी। कई बार तो उसे क्लास खत्म होते ही तेज दौड़ लगानी पड़ती थी ताकि आखिरी ट्रेन छूट न जाए। फिर भी यह स्टेशन उसके लिए शिक्षा पाने का सबसे भरोसेमंद साधन था । काना हराडा के लिए यह स्टेशन लाइफलाइन थी।
अगर यह बंद हो जाता तो उसे स्कूल जाने के लिए 73 मिनट पैदल चलकर दूसरी एक्सप्रेस ट्रेन पकड़नी पड़ती। स्टेशन के चलते भी उसकी यात्रा आसान नहीं थी, क्योंकि दिन में सिर्फ चार ट्रेनें चलती थीं और उनमें से केवल दो ही उसके स्कूल के समय से मेल खाती थीं । क्यू- शिराताकी स्टेशन पर यात्रियों की संख्या लगातार घट रही थी और मालगाड़ियों की सेवा भी बंद हो चुकी थी। इसलिए जापान रेलवे ने इसे बंद करने की योजना बनाई थी। लेकिन जब अधिकारियों को पता चला कि स्थानीय छात्रों खासकर एक किशोरी काना हराडा को रोजाना स्कूल जाने के लिए इस स्टेशन की जरूरत है, तो उन्होंने इसे चालू रखने का फैसला किया।
यह भी पढ़ें : ये सच्ची घटनाएं हैं उन समुद्री जहाजों की जो अपने-आप चलने लगे