सरकार ने अभी तक यह तय नहीं किया है कि यह प्रस्ताव लोस में लाया जाएगा या रास में
नई दिल्ली । केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि प्रमुख विपक्षी दलों ने इलाहावाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा को हटाने के प्रस्ताव का समर्थन करने के लिए अपनी सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है और इस संबंध में सांसदों के हस्ताक्षर कराने की प्रक्रिया जल्द ही शुरू हो सकती है। सरकार ने अभी तक यह तय नहीं किया है कि यह प्रस्ताव लोकसभा में लाया जाएगा या राज्यसभा में। लोकसभा के लिए कम से कम 100 सांसदों के हस्ताक्षर की आवश्यकता होती है।
राज्यसभा के लिए कम से कम 50 सांसदों के समर्थन की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा यह निर्णय लेने के वाद कि प्रस्ताव किस सदन में लाया जायेगा, हस्ताक्षर कराये जायेंगे । संसद का मानसून सत्र 21 जुलाई से शुरू होकर 21 अगस्त तक चलेगा। न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 के अनुसार, जव किसी न्यायाधीश को हटाने का प्रस्ताव किसी भी सदन में स्वीकार कर लिया जाता है, तो अध्यक्ष या सभापति, जैसा भी मामला हो, तीन सदस्यीय एक समिति का गठन करेंगे जो उन आधारों की जांच करेगी जिनके आधार पर न्यायाधीश को हटाने (महाभियोग) की मांग की गई है।
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समिति में भारत के सीजेआई या सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश, 25 उच्च न्यायालयों में से किसी एक के मुख्य न्यायाधीश और एक “प्रतिष्ठित न्यायविद” शामिल होते है। रीजीजू ने कहा कि चूंकि यह मामला न्यायपालिका में भ्रष्टाचार से जुड़ा है, इसलिए सरकार सभी राजनीतिक दलों को साथ लेना चाहती है। न्यायमूर्ति वर्मा के सरकारी आवास पर नकदी मिलने की घटना के वाद गठित जांच समिति की रिपोर्ट के वारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि तीन न्यायाधीशों की समिति की रिपोर्ट का उद्देश्य भविष्य की कार्रवाई की सिफारिश करना था क्योंकि केवल संसद ही एक न्यायाधीश को हटा सकती है।
मार्च में राष्ट्रीय राजधानी में न्यायमूर्ति वर्मा के आवास पर आग लगने की घटना हुई थी और जले हुए वोरों में नोट पाए गए थे। न्यायमूर्ति वर्मा उस समय दिल्ली उच्च न्यायालय में न्यायाधीश थे। न्यायाधीश ने हालांकि नकदी के वारे में अनभिज्ञता का दावा किया था, लेकिन उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति ने कई गवाहों से वात करने और उनके बयान दर्ज करने के वाद उन्हें दोषी ठहराया। तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने उन्हें इस्तीफा देने के लिए कहा था लेकिन न्यायमूर्ति वर्मा ने इंकार कर दिया।
अगले दलाई लामा पर फैसला स्थापित संस्था करेगी
अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने वृहस्पतिवार को कहा कि अगले दलाई लामा पर फैसला सिर्फ स्थापित संस्था और दलाई लामा लेंगे। उन्होंने कहा कि इस फैसले में कोई और शामिल नहीं होगा। यह दलाई लामा की ओर से अपने उत्तराधिकारी को लेकर की गई टिप्पणी पर सरकार के किसी वरिष्ठ पदाधिकारी की पहली प्रतिक्रिया है । इसे चीन के लिए झटके के रूप में देखा जा रहा है।
तिव्वती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा ने बुधवार को कहा था कि दलाई लामा संस्था जारी रहेगी और केवल ‘गादेन फोडरंग ट्रस्ट’ को ही उनके उत्तराधिकारी को मान्यता देने का अधिकार होगा। रिजिजू ने यहां संवाददाताओं से वातचीत में कहा कि दलाई लामा वौद्धों के लिए ‘सर्वाधिक महत्वपूर्ण और निर्णायक संस्था’ हैं। उन्होंने कहा, और दलाई लामा को मानने वाले सभी लोगों की राय है कि उत्तराधिकारी का फैसला स्थापित परंपरा के और दलाई लामा की इच्छा के अनुसार होना चाहिए।
उनके और मौजूदा परंपराओं के अलावा किसी और को इसे तय करने का अधिकार नहीं है। रिजिजू की यह टिप्पणी चीन के नोबेल शांति पुरस्कार विजेता दलाई लामा की उत्तराधिकार योजना को खारिज करने और इस वात पर जोर देने के वाद आई है कि भावी उत्तराधिकारी को उसकी मंजूरी मिलनी चाहिए।
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