नई दिल्ली । बिटिश खोजकर्ताओं ने 112 साल पहले 1911 में अंटार्कटिका के टेलर ग्लेशियर पर खून का झरना बहते देखा गया था। ये झरना पूर्वी अंटार्कटिका के विक्टोरिया लैंड पर है। खून का यह झरना कई दशकों से बह रहा है। अब जाकर इसके निकलने की वजह पता चली है। ग्लेशियर का यह खून नमकीन सीवेज है, जो एक बेहद प्राचीन इकोसिस्टम का हिस्सा है। टेलर ग्लेशियर के नीचे एक अत्यधिक प्राचीन जगह है। ऐसा माना जाता है कि वहां पर जीवन मौजूद है। जिन वैज्ञानिकों ने इस खून के झरने को नजदीक जाकर देखा है। सैंपल लिया है वो बताते हैं कि यह स्वाद में नमकीन है। जैसे खून होता है लेकिन यह इलाका किसी नरक से कम नहीं है यहां जाना मतलब जान जोखिम में डालना।
खून के इस झरने की खोज सबसे पहले ब्रिटिश खोजकर्ता थॉमस ग्रिफिथ टेलर ने 1911 में की थी। अंटार्कटिका के इस इलाके में यूरोपियन वैज्ञानिक सबसे पहले पहुंचे थे। शुरुआत में थॉमस और उनके साथियों को लगा था कि ये लाल रंग की एल्गी है लेकिन ऐसा था नहीं बाद में यह मान्यता रद्द की गई। 1960 में पता चला कि यहां ग्लेशियर के नीचे लौह नमक यानी फेरिक हाइड्रोक्साइड है यह बर्फ की मोटी परत से वैसे निकल रहा है जैसे आप टूथपेस्ट से पेस्ट निकालते हैं। साल 2009 में यह स्टडी आई है कि यहां पर ग्लेशियर के नीचे सूक्ष्मजीव हैं, जिनकी वजह से ये खून का झरना निकल रहा है।
ये सूक्ष्मजीव इस ग्लेशियर के नीचे 15 से 40 लाख साल से हैं। यह एक बहुत बड़े इकोसिस्टम का छोटा हिस्सा है। इस झरने में लोहे के साथ-साथ सिलिकॉन, कैल्सियम, एल्यूमिनियम और सोडियम के कण भी निकल रहे हैं। यह एक दुर्लभ सबग्लेशियल इकोसिस्टम के बैक्टीरिया का घर है। जिनके बारे में किसी को पता नहीं है ये ऐसी जगह जिंदा हैं, जहां पर ऑक्सीजन है ही नहीं। इस जगह का तापमान दिन में माइनस सात डिग्री सेल्सियस रहता है। यानी खून का झरना अत्यधिक ठंडा है। ज्यादा नमक होने की वजह से ये बहता रहता है, नहीं तो जम जाता। दिक्कत ये है कि इंसानों के पास ऐसी तकनीक, रोबोट या यंत्र नहीं है जो ग्लेशियर की गहराई में मौजूद किसी जगह की डिटेल जानकारी निकाल सके।
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