मुंबई। फिल्मकार महेश भट्ट ने फिल्म निर्देशक दिवंगत गुरु दत्त के बारे में कहा कि उनकी विरासत पुरस्कारों की नहीं है और उन्होंने जीवन की व्यथा को ऐसी कविता में बदल दिया जो खामोशी को भी चीर दे । भारतीय सिनेमा के महान फिल्मकारों में गिने जाने वाले गुरु दत्त ने प्यासा, कागज के फूल और साहिब बीबी और गुलाम जैसी कालजयी फिल्में बनाई थीं। नौ जुलाई को उनकी 100वीं जयंती है। 1964 में मात्र 39 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया था।
ऐसा माना जाता है कि नींद की गोलियों और शराब पीने के कारण उनका निधन हो गया था। महेश भट्ट ने कहा उन्होंने जीवन की व्यथा को कविता में बदल दिया, ऐसी कविता जो खामोशी को भी चीर दे। जो उनके बाद आए, वे उस घाव को साथ लेकर चले। हम गुरु दत्त के सौ वर्ष पूरे होने का जश्न नहीं मनाते। हम उनकी विरासत की ओर लौटते हैं। भट्ट ने याद किया कि जब उन्होंने पहली बार राज खोसला के दफ्तर में गुरु दत्त की एक बड़ी तस्वीर देखी, तो वह मंत्रमुग्ध हो गए थे।
फिल्मकार ने कहा गुरु दत्त की विरासत पुरस्कारों, पोस्टर या ल से नहीं बनी है। वह खामोशी से बनी है। ऐसी खामोशी जो जब कमरे में प्रवेश करती है और स्क्रीन के काले होने पर (पिक्चर खत्म होने पर), वहीं ठहर जाती है। वह हमारे ‘व्यास’ ( महाभारत लिखने वाले ऋषि) थे। उन्होंने कहा, ‘‘गुरु दत्त ने अपनी निजी वेदना को काव्यात्मक आकार दिया। उन्होंने अपने पात्रों को करुणा और अंतर्विरोध से रोशन किया।