चुनाव आयोग ने कहा: आरोपों से कुछ हासिल नहीं होगा, राजनीतिक दल नियुक्त करें बीएलए

सत्यापन में जल्दबाजी के आरोपों का चुनाव आयोग ने दिया जवाब, कहा- 2003 में 31 दिनों में हुआ था सत्यापन

पुनरीक्षण अभियान शुरू होने के बाद बिहार में बूथ लेवल एजेंटों की बढ़ी संख्या का ब्योरा भी जारी किया

नई दिल्ली। बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण अभियान पर सवाल उठा रहे राजनीतिक दलों को चुनाव आयोग ने जवाब देते हुए कहा कि बेबुनियाद आरोप लगाने और भ्रम फैलाने से कुछ हासिल नहीं होगा। समय व्यर्थ करने की जगह राजनीतिक दलों को मतदाता सूची को पारदर्शी बनाने के लिए ज्यादा से ज्यादा बूथ लेवल एजेंट (बीएलए) नियुक्त करना चाहिए। इस बीच आयोग ने पुनरीक्षण अभियान शुरू होने के बाद राज्य में बूथ लेवल एजेंटों की बढ़ी संख्या का ब्योरा भी जारी किया है।

कांग्रेस ने सबसे अधिक बीएलए नियुक्त किए हैं। पुनरीक्षण अभियान पर विपक्षी दलों की आपत्तियों का जवाब देते हुए चुनाव आयोग ने बुधवार को कहा कि बिहार में 2003 में भी मतदाता सूची के सत्यापन का काम 31 दिनों में ही पूरा किया गया। आयोग ने इसका पूरा गणित भी समझाया और कहा कि राज्य में मौजूदा समय में राजनीतिक दलों के बूथ लेवल एजेंटों की संख्या डेढ़ लाख से अधिक है। नियमों के तहत प्रत्येक बूथ लेवल एजेंट प्रति दिन बूथ लेवल आफिसर (बीएलओ) के पास मतदाता सत्यापन के अधिकतम 50 आवेदन प्रस्तुत कर सकता है।

ऐसे में राज्य के डेढ़ लाख बीएलए प्रतिदिन 75 लाख से अधिक आवेदन बीएलओ के पास जमा करा सकते हैं। यदि इसी रफ्तार से काम किया जाए तो राज्य के कुल 7.89 करोड़ मतदाताओं का आवेदन जुटाने में अधिकतम 11 दिन का समय लगेगा, जबकि आयोग ने सत्यापन के लिए करीब महीने भर का समय निर्धारित किया है। आयोग ने कहा कि बिहार में सत्यापन शुरू होने से पहले कुल 1.38 लाख बीएलए थे, जबकि सत्यापन शुरू होने के बाद 1.56 लाख बीएलए हो गए हैं। राज्य में मौजूदा समय में करीब एक लाख मतदान केंद्र हैं।

चुनाव आयोग बिहार की मतदाता सूची के सघन पुनरीक्षण की शुरुआत 27 जून से कर चुका है, जिसमें घर-घर जाकर मतदाताओं की जांच की जा रही है। आयोग का कहना है कि राज्य में 2003 में हुए सत्यापन में मौजूद करीब पांच करोड़ मतदाताओं और उसके बाद मतदाता सूची में जुड़े उनके परिजनों को पुनरीक्षण के दौरान कोई भी दस्तावेज देने से छूट दी गई है।

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