नई दिल्ली। ईरान और इजरायल के बीच जारी युद्ध लंबे समय तक चला तो इससे वैश्विक स्तर पर महंगाई में वृद्धि होगी और भारत भी इससे अछूता नहीं रहेगा। अभी भारत की महंगाई दर तीन प्रतिशत से नीचे पहुंच गई है, जिसे जीडीपी के विकास के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
ईरान और इजरायल बीच युद्ध शुरू होने के बाद कच्चा तेल पिछले शुक्रवार को 74 डालर प्रति बैरल के पास पहुंच गया, जबकि मई में कच्चे तेल की कीमत 60-65 डालर प्रति बैरल के बीच चल रही थी। ईरान स्वयं भी कच्चे तेल का बड़ा उत्पादक है और यहां प्रतिदिन 35 लाख बैरल का उत्पादन होता है। इनमें से 25 लाख बैरल का ईरान निर्यात करता है। चीन ईरान के कच्चे तेल का सबसे बड़ा खरीदार है। युद्ध जारी रहा तो ईरान का तेल उत्पादन ठप हो सकता है।
युद्ध जारी रहने पर होर्मुज जलडमरूमध्य और लाल सागर के मार्ग के प्रभावित होने की आशंका है, क्योंकि ईरान ने इन मार्ग को बंद करने की चेतावनी दी है। दुनिया में इस्तेमाल होने वाले 20 प्रतिशत पेट्रोलियम पदार्थ की आपूर्ति इस मार्ग से ही की जाती है। भारत में भी यूएई, इराक और खाड़ी के अन्य देशों से आने वाले पेट्रोलियम पदार्थों की सप्लाई इस मार्ग से ही होती है।
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यही वजह है कि पेट्रोलियम मंत्रालय ईरान व इजरायल के बीच जारी युद्ध पर लगातार नजर रख रहा है। भारत अपनी जरूरत का 85 प्रतिशत पेट्रोलियम पदार्थ आयात करता है और दुनिया में पेट्रोलियम पदार्थों का तीसरा सबसे बड़ा आयातक देश पेट्रोलियम पदार्थों के महंगा होने से भारत का बढ़ेगा आयात बिल। विशेषज्ञों के मुताबिक होर्मुज जलडमरूमध्य ईरान के दक्षिण में फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी से अलग करता है और यह पेट्रोलियम पदार्थ की आवाजाही का प्रमुख मार्ग है। दूसरे मार्ग से पेट्रोलियम पदार्थों की ढुलाई होने कच्चे तेल की कीमत और बढ़ेगी।
पर लागत बढ़ जाएगी, जिससे शिपिंग कंपनियों की तरफ से ईरान व इजरायल के युद्ध के बाद से इंश्योरेंस शुल्क बढ़ाने की चर्चा तेज है। इससे भी लागत पर फर्क आएगा। पेट्रोलियम पदार्थों के महंगे होने पर भारत का आयात बिल बढ़ेगा और ढुलाई बढ़ने से घरेलू स्तर पर महंगाई को हवा मिलेगी जो कहीं न कहीं देश की विकास दर को प्रभावित कर सकता है।
क्रयशक्ति होगी प्रभावित, मांग में आएगी कमी
ईंधन के लिए अभी पूरी दुनिया पेट्रोलियम पदार्थों पर निर्भर करती है। इसलिए महंगाई का इसर पूरी दुनिया पर दिखेगा जिससे विभिन्न देशों की क्रयशक्ति प्रभावित होगी और इससे मांग में कमी आएगी। इस प्रभाव यह होगा कि स्श्विक निर्यात बाजार के कारोबार में भी कमी आ सकती है।
2030 तक भारत में बढ़ेगी तेल की मांग
नई दिल्ली। दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता और आयातक देश भारत अपने शानदार आर्थिक विस्तार के दम पर 2030 तक वैश्विक तेल मांग में प्रतिदिन 10 लाख बैरल जोड़ेगा। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आइईए) ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि दशक के अंत तक वैश्विक तेल मांग में 25 लाख बैरल प्रतिदिन की वृद्धि होने की उम्मीद और 2030 तक वैश्विक तेल मांग 10.55 करोड़ बैरल प्रतिदिन के नए रिकार्ड स्तर पर पहुंच जाएगी। आइईए का अनुमान है कि भारत में कच्चे तेल की मांग 2024 के 56.40 लाख बैरल प्रतिदिन से बढ़कर 2030 में 66.60 लाख बैरल प्रतिदिन हो जाएगी।
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